वेदों का आरंभिक एवं अधिकांश भाग देवी-देवताओं की प्रार्थनाओं और कर्मकांडों के लिए प्रयुक्त मंत्रों से संबंधित मिलता है। इसके अतिरिक्त उनमें मनुष्य के ऐहिक (लौकिक) जीवन के कर्तव्याकर्तव्यों का भी उल्लेख देखने को मिलता है। उनका दार्शनिक पक्ष भी है। तत्संबंधित अध्यात्मिक ज्ञान जिन ग्रंथों के रूप में संकलित हैं उन्हें उपनिषदों के नाम से जाना जाता है।
उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है यह मैं ठीक-से नहीं जान पाया हूं। मेरे पास गीताप्रेस, गोरखपुर, का एक विशेषांक – उपनिषद् अंक – है जिसमें ५४ उपनिषदों की विस्तृत अथवा संक्षिप्त चर्चा की गई है। मेरी जानकारी के अनुसार इनमें से ११ उपनिषद् मुख्य माने जाते है और उन्हीं की चर्चा अक्सर होती है। ये है (अकारादि क्रम से):
(१) ईशावास्योपनिषद् (या ईशोपनिषद्)
(२) ऐतरेयोपनिषद्
(३) कठोपनिषद्
(४) केनोपनिषद्
(५) छान्दोग्योपनिषद्
(६) तैत्तरीयोपनिषद्
(७) प्रश्नोपनिषद्
(८) माण्डूक्योपनिषद्
(९) मुण्डकोपनिषद्
(१०) वृहदारण्यकोपनिषद्
(११) श्वेताश्वरोपनिषद्
इनमें वृहदारण्यक एवं छान्दोग्य उपनिषद् सबसे बड़े
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